किसी भी तरह से उस अवस्था से भागने की कोशिश करना, नर्वस होना, शर्मिंदगी महसूस करना, मरने का डर आदि उस पर हावी रहता है।
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यूं तो यहां प्रावधान है कि बलात्कार पीड़िता जब पुलिस में केस दर्ज करवाने आती है तो उसकी जांच महिला अधिकारी द्वारा की जाए, पीड़िता की मानसिक स्थिति के लिये उसे तत्काल एक काउंसलर उपलब्ध करवाया जाए आदि, उसकी मरजी के खिलाफ उसे मेडिकल जांच के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता लेकिन इन सबके बाद जो सबसे कठिन दौर होता है वह है पीड़ित द्वारा समाज का सामना करने में शर्मिंदगी महसूस करना जो आगे चलकर आत्महत्या का कारण बन जाता है.